महोबा के रहने वाले रामकिशोर अपना कूड़े में बोतल और प्लास्टिक आदि बीन कर काम चलाते थे। एक दिन रामकिशोर कूड़ा बीन रहे थे। अचानक उनकी नजर सामने पड़े एक लाल क़पड़े पर पड़ी। रामकिशोर को लगा हो सकता है उसमे कुछ सामान हो किन्तु जैसी ही रामकिशोर ने उस कपड़े को उठाकर खोला तो उसके होश उड़ गए। उस लाल कपड़े में लिपटी हुई एक मासूम सी बच्ची थी।
रामकिशोर ने पहले सोंचा कि लड़की मर गई होगी किन्तु फिर भी वह उसे अस्पताल लेकर गया। डॉक्टरों ने बताया कि लड़की ज़िंदा है। रामकिशोर बहुत खुस हुआ किन्तु फिर दुखी भी हो गया। वह सोंच रहा था अब इस लड़की का क्या होगा। लेकिन कुछ पल में ही उसने अपना इरादा बदल दिया।उसने किसी तरह लड़की का इलाज कराया और अपने घर ले आया। रामकिशोर के घर में एक बूढ़ी माँ थी। इसके अलावा उसका कोई नहीं था। अब रामकिशोर बच्ची को माँ के पास छोड़ देता और खुद काम पर निकल जाता। रामकिशोर ने उस लड़की का नाम मानसी रखा। मानसी को रामकिशोर ने कृषि से स्नातकोत्तर कराया और खुद भिखारियों की तरह रहा और मानसी को कभी भी कोई दुःख नहीं होने दिया। दिसंबर 2018 में मानसी की सेक्शन अधिकारी हार्टीकल्चर के पद पर दिल्ली में नौकरी लग गई। रामकिशोर की सारी खुशियां पूरी हो गईं थीं। उसने पूरे गाँव में लड्डू बांटे।
मानसी यह कभी जान ही नहीं पायी कि उसका पिता रामकिशोर नहीं है। 3 अक्टूबर 2019 को मानसी की शादी हुई तो रामकिशोर ने खुद यह पूरी कहानी लोगों को बताई। मानसी आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि रामकिशोर उसका पिता नहीं है।
मानसी दिल्ली में ही अपने पापा के साथ रहती है और उसने सारी उम्र अपने पिता को साथ रखने का वचन दिया है। रामकिशोर की माँ की मौत के बाद उसे बहुत मुसीबतें हुई किन्तु वह हारा नहीं और बिना शादी किये मानसी को पलता रहा। उसका कहना है बच्चियों को लोग फेंक देते हैं किन्तु आज के समय में बेटियां बेटों से बिल्कुल भी काम नहीं हैं। अब बहुत खुसी के साथ रामकिशोर अपनी बेटी मानसी के साथ रहता है और उसे आज भी अपनी जान समझता है।
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